"ओम् नमो भगवते वासुदेवायः"
ईश्वर कौन है? इसका उत्तर कहीं भी इतना स्पस्ट नही लिखा जितना श्रीमद भगवत गीता में लिखा है|श्रीमद भगवत गीता में भगवान के शब्द अक्षरशः लिखित हैं जहाँ पर भगवान ने स्वयं के श्रीमुख से सभी रहस्यों का उद्घाटन किया| हम सभी मनुष्यों को पांडव राजकुमार का आभारी होना चाहिये कि उसकी शुद्ध भक्ति के कारण आज हम ईश्वर और सृष्टि के सभी गुढ़ रहस्यों को इतना स्पस्ट जानते हैं|
हर एक मनुष्य को अविलम्ब भगवान के श्री वचनों का अनुसरण करना चाहिये|
मैंने इस पोस्ट में कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों को इकठा किया है| हममे से सभी को ये श्लोक को न सिर्फ जानना चाहिये लेकिन कंठस्थ करना चाहिये|
Ch7:Sh6,7,8
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥
हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण जगत का निर्माता,पालनकर्ता एवं संहारक हूँ ॥
मुझसे उच्चतर कुछ और नही है । यह सम्पूर्ण मुझमे उसी प्रकार गुथा हुआ है जैसे सूत्र(धागे) में मणियों गुंथी होती हैं॥
मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में तेज(प्रकाश) हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥
Ch7:Sh9
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥
भावार्थ : मैं पृथ्वी में स्थित सुगंध हूँ ,अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण जीवों में चेतना और तपस्वियों में तप हूँ॥
Ch7:Sh10
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण चराचर की उत्पत्ति का बीज हूँ। (मैं) बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥
Ch10:sh8
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥
भावार्थ : मैं ही सबका(सम्पूर्ण सृष्टि का) निर्माता हूँ| (सृष्टि में) सबकुछ मुझसे ही(मेरे ही शक्ति से) संचालित हो रहे हैं| इस रहस्य को जानकार श्रद्धावान एवं ज्ञानी भक्तिपूर्वक मेरी आराधना करते हैं|
Ch10:Sh20
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में में स्थित सबका आत्मा हूँ, तथा इस सृष्टि का आदि(आरम्भ), मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥
Ch 9: Sh 4
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ॥
भावार्थ : यह सम्पूर्ण सृष्टि मेरी ही विभूतियों(रूपों) से निर्मित है| सभी प्राणी मुझपर निर्भर हैं परन्तु मैं किसी पर निर्भर नही हूँ|
Ch 9: Sh 4
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥
भावार्थ : जैसे आकाश में सर्वत्र विचरण करता हुआ प्रचंड वायु अंततः आकाश में ही स्थित रहता है वैसे ही सभी प्राणी(या आत्माएं) मुझमे स्थित रहते हैं॥
"श्री हरि ओम् तत् सत्"
ईश्वर कौन है? इसका उत्तर कहीं भी इतना स्पस्ट नही लिखा जितना श्रीमद भगवत गीता में लिखा है|श्रीमद भगवत गीता में भगवान के शब्द अक्षरशः लिखित हैं जहाँ पर भगवान ने स्वयं के श्रीमुख से सभी रहस्यों का उद्घाटन किया| हम सभी मनुष्यों को पांडव राजकुमार का आभारी होना चाहिये कि उसकी शुद्ध भक्ति के कारण आज हम ईश्वर और सृष्टि के सभी गुढ़ रहस्यों को इतना स्पस्ट जानते हैं|
हर एक मनुष्य को अविलम्ब भगवान के श्री वचनों का अनुसरण करना चाहिये|
मैंने इस पोस्ट में कुछ महत्वपूर्ण श्लोकों को इकठा किया है| हममे से सभी को ये श्लोक को न सिर्फ जानना चाहिये लेकिन कंठस्थ करना चाहिये|
Ch7:Sh6,7,8
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥
मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ॥
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः ।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥
हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण जगत का निर्माता,पालनकर्ता एवं संहारक हूँ ॥
मुझसे उच्चतर कुछ और नही है । यह सम्पूर्ण मुझमे उसी प्रकार गुथा हुआ है जैसे सूत्र(धागे) में मणियों गुंथी होती हैं॥
मैं जल में रस हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में तेज(प्रकाश) हूँ, सम्पूर्ण वेदों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि और पुरुषों में पुरुषत्व हूँ॥
Ch7:Sh9
पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु ॥
भावार्थ : मैं पृथ्वी में स्थित सुगंध हूँ ,अग्नि में तेज हूँ तथा सम्पूर्ण जीवों में चेतना और तपस्वियों में तप हूँ॥
Ch7:Sh10
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सम्पूर्ण चराचर की उत्पत्ति का बीज हूँ। (मैं) बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ॥
Ch10:sh8
अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥
भावार्थ : मैं ही सबका(सम्पूर्ण सृष्टि का) निर्माता हूँ| (सृष्टि में) सबकुछ मुझसे ही(मेरे ही शक्ति से) संचालित हो रहे हैं| इस रहस्य को जानकार श्रद्धावान एवं ज्ञानी भक्तिपूर्वक मेरी आराधना करते हैं|
Ch10:Sh20
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में में स्थित सबका आत्मा हूँ, तथा इस सृष्टि का आदि(आरम्भ), मध्य और अंत भी मैं ही हूँ॥
Ch 9: Sh 4
मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ॥
भावार्थ : यह सम्पूर्ण सृष्टि मेरी ही विभूतियों(रूपों) से निर्मित है| सभी प्राणी मुझपर निर्भर हैं परन्तु मैं किसी पर निर्भर नही हूँ|
Ch 9: Sh 4
यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥
भावार्थ : जैसे आकाश में सर्वत्र विचरण करता हुआ प्रचंड वायु अंततः आकाश में ही स्थित रहता है वैसे ही सभी प्राणी(या आत्माएं) मुझमे स्थित रहते हैं॥
"श्री हरि ओम् तत् सत्"